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tasmo ma jyotirmay

In spiritual science, there is a discussion of light meditation and light from place to place. It is not the light emanating from the light bulb or the sun, moon etc., but it is the supreme light, which is shining as a divine light of consciousness in this world. Its existence is visible in the form of Ritambhara Prajna and every person can see within himself as a life light pervading every particle. The more quantity within which it is present, it should be understood that the more divine part is being illuminated in it.  From the central part of the human brain, a whirlpool of light particles keeps erupting. Its bouncing waves form a circle. and then return to its original origin. It is a process similar to radio transmission and storage. The energy released from the Brahmarandhra keeps on flowing through the etheric vibrations in the cosmic universe to the state of consciousness hidden within it. In this way, man keeps on throwing the introduction and effect of his conscious
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my nervous system always watching me

The more scientific knowledge about the elements of power is increasing, the western beliefs related to life and life are changing at a faster rate. The possibilities of the truthfulness of Indian philosophy are increasing equally rapidly. The discoveries made by Indian philosophers by overcoming the difficult processes of sadhana, yoga practice, and western science is progressing there. An analysis of the electromagnetic nature of human life, certified by western science, is being presented, due to which a new form of the imagination of life force, and vitality will be seen. Once Dr Regnault was discussing a patient. Whenever a sick person with mental stress was put to sleep in the east-west direction, with the help of an 'oscillometer', it would be known that the suffering has increased; Whereas, as soon as the direction of taking this person's sleep is north-south, he would get immediate benefits. He told that this incident is proof that man is related to the magne

human magnative power Aura

This body electricity, in whose body the more quantity is accumulated, the more radiant, beautiful, active, energetic, energetic, talented it appears. The immunity power of the body and the micro-sightedness, farsightedness, and intelligence of the brain depends on this electricity. The sweetness of nature is commonly called attraction. Even in the softness of the limbs, the beauty of which is reflected, in them also, from the classical point of view, the special power of electrical vibrations is contained in them. There is a special charm in someone's eyes, in someone's lips, in someone's chin etc. On its elemental analysis,  the electricity of the human body is proved to be wavy. Whenever it starts happening in it, the body becomes dry, ugly, sluggish, dull, and visible. There is humility in the eyes, and sadness on the face, seeing this dissolution, it can be concluded that the waves of radiance have become relaxed and there is a lack of desired energy. Measures a

concentration power

Concentration is a form of power, which every human being keeps on cultivating. Human development depends on concentration. All the achievements of life erupt from the womb of a concentrated mind, but most the people are unable to plan the full potential of life due to lack of concentration and are deprived of success and cannot lead a meaningful life, one of the reasons for this is the fickleness of the mind. There is a tendency. Generally, the nature of the mind is fickle. It is not concentrated in one place. Because of this, we are surrounded by problems. The speed of the human mind is faster than air. It is not the nature of the mind to stay focused on one place. To concentrate the mind in this way demands a special effort. It is a kind of mental sadhna, under which the mind has to be diverted from unnecessary things to meaningful work and the goal is to be achieved by making the best use of one's time, and labour. What is done in the process of meditation is to calm

आव्हान हो रहा हैं!

मैं आव्हान करता हूं, उन युवाओं का जिनके रक्त में देश भक्ति का ज्वालामुखी फूट रहा है। जिनके प्राण मातृभूमि की सेवा लिए तत्पर है। मैं आव्हान करता हूं उन सुपतो का जिनका कण कण समर्पित हैं। मैं आव्हान करता हूं जिनके भीतर ऊर्जा सा प्राण दौड़ रहा है! हो रहा है आव्हान युगपुरुष का, भारत की धरा पर प्राकट्य हो उस युग पुरुष का! धन्य है वह भारत की माटी जहां का कण कण राम है, यह का हर एक युवा प्रचंड पुरुषार्थी है। युवाओं के संप्रेरक, भारतीय संस्कृति के अग्रदूत, विश्वधर्म के उद्घोषक, व्यावहारिक वेदांत के प्रणेता, वैज्ञानिक अध्यात्म के भविष्यद्रष्टा युगनायक भारत के अनेक युगपुरुष, गुरु जिनको शरीर त्यागे सौ वर्ष से अधिक समय हो गया है, लेकिन उनका हिमालय-सा उत्तुंग व्यक्तित्व आज भी युगाकाश पर जाज्वल्यमान सूर्य की भाँति प्रकाशमान है। उनका जीवन दर्शन आज भी उतना ही उत्प्रेरक एवं प्रभावी है, जितना सौ वर्ष पूर्व था, बल्कि उससे भी अधिक प्रासंगिक बन गया है। तब राजनीतिक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी माँ भारती की दोन-दुर्बल संतानों को इस योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद की हुंकार ने अपनी कालजयी संस्कृत

आरोग्यं मंत्र।

आंवला मनुष्य जाति को मिला हुआ कल्पवृक्ष है। आवला का यह बहुगुणी वृक्ष परमेश्वर ने मानव को स्वस्थ रखने के लिए निर्माण किया है। और कुष्मांड (पेठा) अनेक औषधि गुणो से युक्त है। भारतीय संस्कृती में माँ प्रकृती को धन्यवाद करने की प्रथा है, जिसमे वह त्योहार रूपो में मनाया जाता है। जैसा की आप जानते है की, भारतीय संस्कृती मे वृक्षो का अनन्य साधारण महत्व रहा है। सदियों से वृक्षों की पुजा की जाती। क्योकी, निर्जिव वस्तुओं से अन्न (भोजन) कैसे तैयार किया जाता? यह रहस्य केवल वृक्षो को ही पता है। हम बाहर के विज्ञान को कितना ही जानते है, पर कुछ बातो पर अभी भी पड़दा है। वह रहस्य है। साधारण मिटट्टी, कुछ खाद, सुर्यप्रकाश इन सब चिजे मिलाकर वनस्पती अपना उत्पाद बनाते है। जैसे आम, चावल, गेहूं जैसे अप्रतिम पदार्थ तैयार करती है। इस गूढ़ रहस्य का विज्ञान वृक्ष, वनस्पती और माँ प्रकृती ही जाने। वनस्पती सृष्टी ही प्रथम अस्तित्व की धरोहर है। हमारे पूर्वज पीढ़ी का पुराना अस्तित्व है। पर उन सबकी जड़े एक ही वंशवृक्ष तक पहुंचती है। इस तथ्य को हमे समझना है। इसी कारण से वृक्षों की पूजा अर्चना कि जाती है। हमारी

human Life vs plastic

देश की राजधानी दिल्ली और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई समेत भारत में आठ शहर ऐसे हैं, जिनकी रफ्तार कभी ठहरती व थमती नहीं है, लेकिन कुछ ही सालों में प्लास्टिक इनकी रफ्तार पकड़ कर सामने आया है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की अर्थव्यवस्था की दशा दिशा तय करने वाले ये शहर आज मामूली बारिश भी सहन कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। कुछ ही मिनटों में इनके गली-मुहल्ले डूब जाते हैं, और जनजीवन ठप्प हो जाता है। बड़े शहरों की ड्रिनेज लाईन में लगातार फँसते और बढ़ते प्लास्टिक कचरे को यदि समय रहते नहीं निकाला गया, तो आने वाले समय में यह संकट और भी गहरा हो सकता है। आज चारों ओर बिखरे प्लास्टिक कचरे के चलते ड्रेनेज सिस्टम ध्वस्त होता जा रहा है और जरा-सी बारिश में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो रही है। चार महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई) समेत बेंगलुरू, हैदराबाद, लखनऊ, देहरादून, रांची और पटना की यदि बात करें तो देश की पाँच फीसदी से ज्यादा आबादी इन्हीं शहरों में रहती है। देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में भी ये शहर अहम योगदान दे रहे हैं, लेकिन ये शहर भी अब प्लास्टिक के बोझ तले दबे जा रहे