"ऐसी दशा जब आपको नकारात्मकता के अलावा और कुछ दिखे ही नहीं। एक स्थिती जब आपको अंधेरा जकड़ लेवे। कोई मार्ग नही दिखे तो, गुरुरूप श्रीमद्भगवद्गीता का आव्हान ही जीवन को सफल दिशा निर्देश दिखाएगा। गीता जी हमे दीपक की प्रेरणा देती है।"
एक तेजस्वी किरण जो आपको अर्जुन बनने का मौका प्रदान करती हैं। तभी समझ लेना ईश्वर आपके साथ है। आप अकेले नहीं हो, सर्वशक्तीमान सत्ता निरन्तर आपके साथ है। आज जगत में अनेक किताबे, काव्य, ग्रंथ तत्वज्ञान, महाकाव्य, धर्मग्रंथ इन्ही सब ग्रंथो मे ज्ञानविज्ञान की संपदा और सौंदर्य का बखान भरा पड़ा हुआ है। इन दिव्य साहित्य के सुमेरू पर्वत श्रृंखला मे शिर्षस्थ स्थान श्रीमद्भागवतगीता का ही है। श्रीगीता जी के नाम से और भी धर्मग्रंथ है, जो भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा श्रीगीताजी के बाद हुए है। जैसे की अपने परम मित्र उद्धव को विनंती के अनुसार स्वयं भगवान में बताई हुई "उद्धव गीता"।अखंड प्रतिज्ञा धारी महात्मा भिष्मजी के आग्रहस्तव "भीष्म गीता"। और अर्जुन के अनुरोध पर बताई हुई "अनुगीता"। जड़ और स्थूल दृष्टी से देखा जाए तो यह सब चीजों के कर्ता स्वयं भगवान ही है। सत्य की अन्य भुजाओं को देखें तो, अन्य गीता में भगवान श्रीकृष्ण रूप मनुष्य अवतार मे मार्गदर्शन किया है। पर श्रीमद् भागवत गीता मे किसी भावस्वरूप से परे होकर स्वयं भगवान योगेश्वर केशव ने विराट स्वरूप मे उपदेश किया है। इसलिए स्वयं योगेश्वर जिसमें अभिव्यक्त हुए है, वह एकमात्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता जी है। इस दिव्य ग्रंथ का धन्यवाद दिन 'गीता' जयंती को मनाया जाता है। भगवान का धन्यवाद किया जाता है। इस लिए यह भारत भूमि श्रेष्ठ हैं।
ब्रम्ह अवतरण श्रीदिव्य भारत भुमि पर ज्ञानोपदेश की परंपरा प्राचिन तो है ही सदैव भगवान का स्नेह प्राप्त हुआ है इस धरती पर। विचार-विमर्श के इस प्रसंग वश वक्ता और श्रोता इन दोनों की मन: स्थिति शांत है। इस समय प्रकृति की शांतता अपने परम स्थान पर स्थित होती है। तभी जाकर एक दिव्य स्फुरण से वातावरण मे दिव्य संवाद का प्राकट्य होता है। हमे कल्पना करनी है, जब कुरुक्षेत्र पर दोनो तरफ विशाल सैन्य, रथी, महारथी, योध्दे सभी रणभुमी पर खड़े थे। तब युद्ध का शंखनाद हुआ है। हर एक योध्दा तैयार है, अपना पराक्रम सिद्ध करने के लिए। इस समय मे अहंकार चढ़ा हुआ, मोह,डर आक्रोश के भाव एक ही समय पर उपस्थित हैं। इस विषम परिस्थिती में स्वयं भगवंत अर्जुन के हृदय में ज्ञान और कर्म, भक्ती का दिव्य प्रवाह को प्रवाहित करते हुए अपनी प्रतिती देते है। काल पर विजय रेखा का यह नाद लिखा जा रहा है, यह तो केवल कल्पना है, रोमांच को अनुभव करो, इस समय की कौनसी परिस्थिती रही होगी? गीता जी के उपदेश मुल्य और महत्व का अपना दिव्य स्थान है। क्योंकी यह ज्ञान बुध्दीगम्य नहीं है। यह ज्ञान बोधगम्य है। इस संवाद मे श्रोता रूपी अर्जुन के प्रश्न का स्तर बहुत उच्च और श्रेष्ठ है। इन्ही प्रश्नों का समाधान स्वयं परमश्रेष्ठ भगवान कर रहे हैं। यह आध्यात्मिक संवाद जिज्ञासा रूप मे उत्पन्न हुआ है। इस दिव्य संवाद मे जड़ संसार का पुर्णत: अभाव है। संसार और इससे जुड़ी चिजो का इस संवाद मे कोई स्थान नहीं है। परिवर्तन का नियम शाश्वत और अटल है। पर यह श्रीमदभगवतगीता तो चैतन्य की यात्रा पर सवार है। यही उस शाश्वत परीचय हैं।
यह ज्ञान उस शाश्वत तत्व से उत्पन्न हुआ है, इस लिए यह दिव्य ज्ञान स्वयं अपना परिचय कराता है। श्रीगीता जी की विचार धारा व्यापक है। लय और तरंग से उपर निचे होने वाली उच्च भावना की अनुभूति का दर्शन कराती है। श्रीगीता जी प्रमाण है, व्यापक समन्वयीत बुध्दी और संपन्न सद्गुणप्राप्त अखंड श्रध्दा का। यही निर्गुणज्ञान प्राप्त करने वाली विद्या है। गीता जी के एक तरफ योग का दिव्य ज्ञान है, तो दूसरी बाजु बिजनेस, व्यवहारिक ज्ञान है। जहाँ भगवंत अपनी अलग-अलग भूमिका का निभाते नजर आते हैं। वो कही पर ऋषि रूप में उपदेश देते हैं तो, कही पर कठिन समय मे सच्चा मित्र बनते है। कभी गुरु बनकर तो, कभी विराट उग्र रूप का दर्शन करवाते हुए ,मनुष्य के परमकल्याण के नाना प्रकार के सुबोध मार्गदर्शन गीता जी में विद्यमान है। एक उदिदृष्ठ एक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ज्ञान, कर्म, भक्ती का त्रिसुत्री पाठ का विवेचन गीता जी में बताया है। यह शिक्षा अन्यत्र कहीं भी नहीं है। गीताजी किसी भी मत संप्रदाय की नहीं है। यह तो उस मनुष्य का के लिए उस महाद्वार के समान के है, जिसमे प्रवेश करने से उस चिदाकाश आध्यात्मिक सत्य की अनुभुति महसूस करने मिलती है। इस चिदाकाश में परम सत्ता का दिव्य दर्शन प्राप्त होता है। "अहम् ब्रम्हास्मि शिवोहम शिवोहम" की साक्षात प्रतिति मिलती है। गीताजी के ज्ञान को साधक जिस रुप मे ध्याता है, वह ज्ञान उस रूप में साधक की मदद करता है। वैज्ञानिक को के लिए गीता जी स्वयं अक्षय पात्र है। ज्ञान का अमृत यहां निरंतर बहता है। खोज अनुसंधान के लिए यह अनोखी प्रेरणा प्रदान करता है।
वैज्ञानिकों के लिए यह किसी अविष्कार से कम नहीं है। तो बीमार व्यक्ती के लिए यह उपचार है। डिप्रेशन और कमजोर व्यक्ती के लिए मन: शास्त्र है। बौद्धिक तृष्णा को तृप्त करने के लिए यह पानी का बहता झरना है। समाज के विकास के लिए राष्ट्र विकास के लिए यह नीती शास्त्र है। विद्वानो के लिए यह शाश्वत ज्ञान है तो, भक्त के लिए स्वयं भगवान दक्षिणामूर्ति है। श्रीगीता जी यह वो विलक्षण शक्ती, ज्ञान है जो अनेक रूपों से हमे प्रदान होती है। श्रीगिता जी केवल पढ़ने पढ़ाने और शास्त्रार्थ करना इतना ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान पिने के लिए है। स्वयं को सिद्ध करने के लिए है। यह स्वयं पुर्ती का ज्ञान है। यह ज्ञान की गंगा मे हर एक व्यक्ती ने डुबकी लगानी चाहिए। यह पूर्णमिद अष्टपैलू विकास का केंद्र है। श्रीगीता जी हमे अवसर प्रदान करती है उत्तम श्रोता बनने का। जिसके बाद हम काबिल बन सके परम वाणी सुनने के लिए। श्रीभगवतगीता जी को हर एक घर, व्यक्ती ने इस ज्ञान को सिखना चहिए | यह शाश्वत ज्ञान है। जिवन के हर पैलू पर राह ज्ञान अपनी प्रचिती का शाश्वत भाव का दर्शन कराता है। इस ज्ञान को आत्मसात करना किसी तप से कम नहीं है। गीता जी से हम आखिर में दिपक की प्रेरणा लेते हैं।
चैतन्य आत्मा इस शरीर की शोभा है। आत्मा भृकुटि में आँखों के पीछे बैठ पूरे शरीर का नियंत्रण करती है। इसी की याद में गीता जी के ज्ञान दीपक जलाते हैं। यह ज्योति उमंग, उत्साह व खुशियों का प्रतीक है। आत्मा व परमात्मा सदा जागृत ज्योति स्वरुप हैं। इन्हीं की याद में भीतर सद्गुणों का दीपक प्रज्वलित करते है। दीपक, प्रकाश सत्य का प्रतीक है। एकाग्रता व निरन्तर अध्ययन से दीपक की लौ सदा ऊपर की ओर उठी रहती है। हम सदा ऐसे उच्च कर्म करें जिनसे हमारा मस्तक गर्व से ऊँचा रहे। दीपक की लौ की तरह किसी गलत दबाव के आगे न झुकें। जलता दीपक चारों ओर प्रकाश, ऊर्जा व आभा बिखेरता है। हम भी जीवन में चारों ओर ज्ञान का प्रकाश व गुणों की सुगंध बिखेरते चलें। ज्ञान का दीपक स्वयं जलकर औरों का मार्गदर्शन करता है। त्याग और बलिदान की प्रेरणा देता है। हम भी अपना जीवन यज्ञमय एवं विश्व कल्याणार्थ जीकर प्रभु को अर्पित करें। दीपक हमें सद्ज्ञान की ओर अग्रसर होने का मौन संदेश देता है। अपने संपर्क के वातावरण को अपनी ऊर्जा से पावन बनाता है। हम भी ज्ञानमय जीवन जीकर अपने संपर्क के वातावरण को पवित्र बनायें। विघ्नकर्ता नहीं बनें, बल्कि विघ्नहर्ता बनें। दीपक के संपर्क में जो आता उसे वायुभूत कर विश्व सेवार्थ बिखेर देता है। हम भी अपनी सर्व उपलब्धियों का अंश विश्व सेवा में लगाते रहें। कर्म करते रहेंगे, फल की इच्छा का त्याग करेगे। हम अपना जीवन दीपक की तरह उमंग-उत्साहमय जिएंगे। बुझा हुआ दीपक बताता है कि जो दिखाई देता है वह स्थाई नहीं। उसका अंत थोड़ी सी राख ही है। दिखाई देनेवाला पंचतत्वों का यह शरीर भी स्थाई नहीं। इसका अंत भी राख की मुट्ठी भर ढ़ेरी ही है। अत: हम देह अभिमान त्याग जीवन के क्षणों का सार्थक उपयोग कर लें।
आप भी गीता जी का यह दिया ज्ञान के दीपक की तरह ही ज्ञान-सितारे बन पूरी दुनिया को सदा ज्ञान से प्रकाशित करें। अपने गुणों की सुगंध चारों ओर फैलायें। आप देश तथा विश्व के भविष्य हो । महत्वपूर्ण हो। संपूर्ण विश्व के लिये प्रकाश हो। उस सर्व शक्तिमान भगवान के आप पुत्र हो!!
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