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तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु !

अदभूत अलंकार के धनी जो निरंतर शांभवी में स्थित रहता है , वो रौद्र महाकाल का स्वरूप भगवान शंभू शंकर है। वो आदियोगी शिव है, जिससे योग की धारा बहती है। वही भगवान दक्षामूर्ति बन कर  गुरु सत्ता को ज्ञान प्रदान कराते है। जो कालो का काल है वह महाकाल है। जिसका डमरू बीज मंत्रों की उत्पत्ति कर ध्वनि विज्ञान को जन्म देता है, तो जिसका तीसरा नेत्र तेज का रौद्र का परिचय कराता हैं। वही चंद्रेशेखर मस्तक पर चंद्र धारण करता है ,अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म करता है वही महाकाल शिव शंभू है। कंठ में विष को धारण करता ,सर्प की माला को अपना आभूषण करता अति रौद्र सा प्रतीत होता है ,भारत की गुरु सत्ता उस कल्याणकारी शिव का आव्हान करती है, जो रौद्र है तो सदा शिव है।
मंगलकारी शिव अपने हर एक कला से अनंत का बोध कराते है।वही भारत की पुण्य भूमि में ऋषि पतंजलि बनकर योग का दर्शन करते है। वहीं ऋषि विश्वामित्र बनकर गायत्री के 24 शक्तियों का ज्ञान कराते है। भगवान शिव की महिमा अनंत है। 

यह तक हमने भगवान शिव के वर्णन को देखा पर यहां हमे भगवान शिव के दूसरे अंग उपासना विद्या को जानने का प्रयास करेंगे। उपासना की शुद्धि आपको परम सत्ता के निकट लेके जाती है। जहा आपका जुड़ाव होता है, उसे योग कहते है। योग का मतलब है, आपका उस परम सुंदर सत्ता के साथ जुड़ाव होता हैं। जिसके लिए हमे उपासना के प्रथम चरण पूर्वतयारी को करना होगा। यही उपासना विधि का प्राण है। जिसे महर्षि पतंजलि ने "यम और  नियम" का परिचय देकर अष्टांगयोग को आरंभ किया है। 

यहां  आपका लक्ष्य परम सत्ता के निकट जाना है। जो ज्योर्तिमय शिव ही है। जिसे अनंत कहा जाता है। व्यक्तित्व के सूर्योदय के लिए उपासना ही प्रथम चरण है। जो आपको भीतर की यात्रा करवाता है। उपासना का यहां अर्थ होता है " नजदीक होना" उस परम शक्ति के साथ। भगवान शिव हमे उपासना के तत्व का बोध करवाते है, जिसे मानसशास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो जिसे आत्म और परमात्मा के सद्गुण ,सद्भाव, चितशक्ति के उर्ध्वगमन की भीतर की क्रिया कही जाती है। थियालॉजीयन वैज्ञानिक अपटन सिंकलेयर अपने  "साइकोलॉजी ऑफ रिलीजन" में उल्लेख करता है, जो परम सत्ता है वह एक ही है , जिससे अनंत काल तक निकटता और संबंध स्थापित कर सकते हो। यह आपको समझाने की कोशिश हो रही है, इसी निकटता को हम अन्य भाषा में केमिस्ट्री कहते हैं। 
मानसशास्त्रज्ञ थूलेस इस निकटता को "सायको केमिस्ट्री" मानता हैं।वह अपने किताब "इंटर इक्वेशन बिटवीन पर्सनेलिटी" मे कहता है, आपके निकटता के समय के स्थिति पर आप अपने वेग और तीव्रता का अनुमान लगा सकते है। भगवान और भक्त के संबंध को श्रेष्ठ माना गया है। इसी उपासना के कर्मकांड चरण को देखते हुए भगवान शिव के निकट्म प्राकट्य का प्रतीक है "रुद्राक्ष" । रुद्राक्ष उपासना के सामिप्य लेके जाने वाला अदभुत शक्ति संचालन केंद्र हैं रुद्राक्ष । यह रुद्राक्ष शक्ति परिवर्तन का अनोखा मानसशास्त्र है, जो चरित्र से लेकर लक्ष्य में आमुलाग्र परिवर्तन का धनी है, रुद्राक्ष। रुद्राक्ष इस चेतनामय शक्ति का स्वरूप हमे "अहम ब्रम्हास्मि " का परिचय देता हुआ प्रतीत होता है।

रुद्राक्ष की महिमा वैदिक संस्कृति से वर्णित है। हमारे वैदिक वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने इसे पूजा पद्धति में शामिल कर रुद्राक्ष की पवित्रता को संरक्षित किया है। रुद्राक्ष प्रकृति की एक ऐसी विलक्षण वस्तु है जिसका वर्णन हमारे अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। रुद्राक्ष के वृक्षों पर लगनेवाले फल के बीज को रुद्राक्ष कहते हैं। यह एक दिव्य शक्ति बीज है, जो शिवतत्व से जुड़ा है। इसमें आध्यात्मिक विश्वरूपता के साथ-साथ विद्युत चुंबकीय गुण भी हैं। रुद्राक्ष धारक के व्यक्तित्व में बदलाव, आकर्षण शक्ति में वृद्धि, आत्मविश्वास तथा भौतिक सुख-साधनों में प्राप्ति के योग धनात्मक रूप से आने लगते हैं। रुद्राक्ष धारण करनेवाले के जीवन में सुखद बदलाव किसी जादू-मंत्र के कारण नहीं अपितु इसके प्राकृतिक गुण धर्म, जिनका वैज्ञानिक आधार है, के कारण आता है। शोध करने के बाद आधुनिक वैज्ञानिकों का ऐसा कहनाहै कि, रुद्राक्षमाला का शरीर की त्वचा से घर्षण होने पर मनुष्य के शरीर में एक प्रकार का स्यूमन मैगनेटिज्म (मानव चुंबक) एवं ह्यूमन इलेक्ट्रोसिटी (मानव विद्युत्) का निर्माण होता है। शोध के बाद यह भी सिद्ध हो गया है कि मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होनेवाली प्राकृतिक विद्युत् और रुद्राक्ष में विद्यमान विद्युत्, दोनों में एक जैसी दो मिलिवोल्ट्ज (2 Milivolts) की शक्ति होती है। एक जैसी शक्ति होने के कारण यह मानव शरीर के अनुरूप कार्य करती है और उसमें मानसिक व शारीरिक परिवर्तन लाती है।
रुद्राक्ष में जो इलेक्ट्रोमैगनेटिक (Electromagnetic) और पैरा-मैगनेटिक शक्ति होती है, वह इसके धारक के मस्तिष्क में ऐसी शक्ति भेजती है जो मस्तिष्क के सकारात्मक केंद्रों को सक्रिय करती है, जिसके कारण उसके धारक व्यक्ति की सोच में परिवर्तन आता है और उसके अनेक मनोरोग (मानसिक तनाव, उदासी, अल्प स्मरण शक्ति आदि) दूर हो जाते हैं। यही नहीं, रुद्राक्ष से निकलनेवाली सकारात्मक तरंगें इसके धारक की नकारात्मक सोच खत्म करती हैं।

मानसिक रोगों में यह चत्मकारिक औषधी है।जो स्ट्रेस लेवल को कंट्रोल करता देखा गया है। कही मान्यता के अनुसार यह वैराग्य को प्रदान करने वाला माना जाता है। मानसिक रोगों के अतिरिक्त रुद्राक्ष शारीरिक रोग निवारक औषधि भी है। यह ब्लडप्रेशर (रक्तचाप) को नियंत्रित करता है और दमा, अनिद्रा, तंत्रिका (Nervous), हृदय रोग, ज्वर, जुकाम आदि व्याधियों में भी बहुत उपयोगी है। कुछ हद तक यह मधुमेह (डायबिटीज) को भी कम करता है। इसे धारण करने के अतिरिक्त इसका प्रयोग कई और प्रकार से भी होता है, जैसे दूध में उबालकर, घिसकर शहद के साथ लेना जलाकर इसकी भस्म खाना आदि। रुद्राक्ष में कई प्रकार के खनिज व धातु पाए जाते हैं जैसे-ताँबा, मैगनीशियम, लोहा, चाँदी, सोना और बेरियम आम आदमी के लिए रुद्राक्ष में पाए जानेवाले इन खनिज धातुओं का कोई मतलब नहीं है। परंतु डॉक्टरों के लिए इसमें पाए जानेवाला सोना और बेरियम हृदय रोग को ठीक करने की क्षमता रखते हैं।

रुद्राक्ष के ऊपर अमेरिका में काफी हद तक प्रयोग और शोध हुए है।
अमेरिका के डॉक्टर ऐबराहिम जार्जु ने रुद्राक्ष के औषधीय गुणों का गहरा अध्ययन किया। शोध के बाद उसका मानना था कि रुद्राक्ष में निश्चित रूप से मानसिक रोगों को ठीक करने की क्षमता है। विशेष रूप से तनाव को दूर करने व मानसिक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का गुण रुद्राक्ष में है। कुछ वैज्ञानिकों का तो मानना है कि रुद्राक्ष माला एक प्रकार का 'ऐंटिना' है, जिसमें सब प्रकार की नकारात्मकता को नष्ट करने की शक्ति है। इसी कारण रुद्राक्ष माला को धारण करनेवाले व्यक्ति नकारात्मक सोच से दूर रहते हैं।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रुद्राक्ष भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी पाए जाते हैं। इंडोनेशिया में रुद्राक्ष से इंजेक्शन बनाए जाते हैं, जिन्हें चीन को निर्यात किया जाता है। इसी प्रकार, जर्मनी में रुद्राक्ष पर गहन शोध हुआ है और उन्होंने भी इस बात का प्रतिपादन किया है कि रुद्राक्ष में चुंबकीय शक्ति होती है, जो मनुष्य पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। खेद है कि भारत के 21 सदी का आधुनिक युग में रुद्राक्ष पर कोई शोध कार्य नहीं हुआ है। रुद्राक्ष को केवल कर्मकांड का हिस्सा माना जा कर उपेक्षा ही की जाती रही हैं। रुद्राक्ष यह विलक्षण वस्तु के ऊपर गहन शोध की जरूरत है। आज बढ़ते तनाव ,प्रदूषण के वातावरण के बीच इस औषधि को उसका अधिकार उसे प्रदान करना होगा। परंतु व्यक्तिगत रूप से कुछ लोगों ने इस पर अध्ययन अवश्य किया है। यहाँ एक आश्चर्यजनक बात यह है कि हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि मुनियों ने रुद्राक्ष पर जो शोध किया था, वह आज के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से कहीं अधिक आगे है, क्योंकि आधुनिक वैज्ञानिकों को तो अभी रुद्राक्ष के कई और रहस्यों को जानना बाकी है। अभी तो उन्हें यह जानना शेष है कि रुद्राक्ष का अर्थ है- वह शक्ति जो मनुष्य के मन से सब प्रकार के भय को भगा देती है, यहाँ तक कि उसे मृत्यु का भी भय नहीं रहता ग्रहदोष भी उसका अनिष्ट नहीं कर पाते। यह एक पापनाशक वनस्पति है, जिसे भगवान् शिव का आशीर्वाद प्राप्त है। रुद्राक्ष की माला पर किए जानेवाले मंत्रों का जप कई गुना अधिक होता है। ये ऐसे तथ्य हैं, जिनकी खोज और शोध आज के वैज्ञानिकों को अभी करना बाकी है।

रुद्राक्ष के फल गुच्छों में लगते हैं और मई-जून में निकलते हैं तथा सितंबर से नवंबर तक पक जाते हैं। रुद्राक्ष निकालने के लिए इसके फल को कई दिन पानी में भिगोकर रखा जाता है। फिर बाद में उससे गुच्छा हटाकर रुद्राक्ष प्राप्त किया जाता है। रुद्राक्ष मणि चार रंग की होती है-श्वेत, ताम्र पीत और श्याम रुद्राक्ष में जो छिद्र होता है, वह प्राकृतिक ही होता है, बस उसे सूई द्वारा खोलकर साफ किया जाता है। रुद्राक्ष के संबंध में एक अद्भुत बात यह है कि इसके एक ही पेड़ पर एक से चौदह मुखी तक के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, जबकि आँवले के पेड़ पर एक ही तरह के यानी सात फाँकवाले फल लगते हैं। यह भी प्रकृति का एक आश्चर्य है। शास्त्रों में एक मुखी से चौदह मुखी रुद्राक्षों का ही वर्णन है, किंतु प्रकृति में इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष पाए गए हैं। कई विशेषज्ञों का मंतव्य है कि जिस प्रकार २७ नक्षत्र होते हैं, उसी तरह २७ मुखी तक रुद्राक्ष हो सकते हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष का अलग-अलग आध्यात्मिक व भौतिक प्रभाव होता है। यह इस कारण होता है, क्योंकि अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष की शक्ति और चुंबकीय क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।

मंत्रजप की माला में १०८ मणि तथा एक सुमेरुमणि होनी चाहिए। रुद्राक्ष मणियों के मुख एक-दूसरे के आमने सामने होने चाहिए, वरना उसका प्रभाव कम हो जाएगा। सुमेरुमणि का मुख ऊर्ध्व (ऊपर की ओर) रखना चाहिए। माला का धागा (डोरा) रेशम का मजबूत होना चाहिए अथवा सोने या चाँदी के तार में माला गूँथनी चाहिए। इस प्रावधान का वैज्ञानिक आधार यह है कि ये सभी माध्यम गुड-कंडक्टर ऑफ इलेक्ट्रीसिटी हैं, जो रुद्राक्ष की विद्युत शक्ति को बनाए रखने में सहायक होते हैं। आज हमे वक्त है हम मां प्रकृति का धन्यवाद कर सके जो हमे हर एक मोड़ पर हर एक पल पल पर हमे सहायता करती है। मां प्रकृति के पास सब चीजों का समाधान है। हमे जरूInरत हैं ,तो है उसे सुरक्षित रखने की और उससे प्रेमभाव रखने की। क्यूकि मां प्रकृति ही सबसे बड़ा डॉक्टर है। अंत में यह सब शिव से उत्पन्न है और शिव में समाया है। शिव ही सत्यम शिवम सुंदरम है।

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