Skip to main content

भारतीय गौ माता के वैज्ञानिक तथ्य।

भारत वर्ष में भगवान श्रीराम से लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने गौ को अनन्य साधारण मान्यता दी है। वे सब गौ उपासक थे। इसी लिए हमारी भारतीय संस्कृति में गौ को माता का दर्जा दिया है।गौ माता हमारा भरण पोषण कर मां प्रकृति को संरक्षित करती है। आज डिप्रेशन जैसे बीमारी को हम गौ के द्वारा दूर कर स्वस्थ जीवन की नीव रख सकते है। भविष्य में मानव जाति केवल और केवल गौ के आधार पर सुरक्षित रह पाएंगी। भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग गौ को माना गया है। जिसका स्थान हमारी पूजा विधि से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक है। शास्त्रों का मानना है ,मानव का पूर्वजन्म गौ की योनि में होता है। भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक आधार पर खड़ी थी , तो गौ भारतीय संस्कृति का मेरुदंड के रूप में साकार रूप है। भारतीय संस्कृति के हर एक कार्य में गौ सलग्न है। हमे यदि मां प्राकृति का भरण पोषण करना है तो हमे गौ माता का को सहज कर रखना पड़ेगा।

ओ३म्  सनातन धर्म का प्राण है। गौ भारतीय संस्कृति का मेरुदंड है। भारत में गौमाता की पूजा सदा से होती आई है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार गौ भारत की ही नहीं अपितु विश्वमाता है। वेदों का मानना है कि विश्व के जड़-चेतन सभी प्राणियों में कोई-न-कोई देवता की शक्ति होती हैं। परंतु गौमाता के शरीर में तो सभी देव-तत्त्व विद्यमान हैं। इसी कारण गाय को सर्वदेवमयी एवं विश्वरूपा कहा गया है। हिंदू धर्म में शायद ही कोई ऐसा ग्रंथ होगा, जिसमें गौमाता की महिमा का वर्णन न किया गया हो। गौ का दूध सात्त्विक गुणों को जाग्रत करता है। गाय आर्यों की परम प्रिय थी, जिसका दूध वे प्रतिदिन सेवन करते थे और आपस में एकता व प्रेम से रहते थे। इसके विपरीत राक्षसों की संस्कृति में भैंस को प्रधानता दी जाती थी।

गाय से प्राप्त दूध, दही, घी, गोबर और गौमूत्र-ये सभी पदार्थ पवित्र हैं। इन पाँचों पदार्थों को मिलाकर 'पंचगव्य' बनाते हैं। पंचगव्य पापों का नाश करनेवाला व शुद्ध करनेवाला माना जाता है।  भगवान शिव को अति प्रिय बिल्व वृक्ष गौमाता के गोबर उपजा है। इस वृक्ष में माँ भगवती लक्ष्मी का निवास है। इसलिए इसे 'श्रीवृक्ष' भी कहते हैं। नीलकमल तथा रक्त कमल फूलों के बीज भी गौ के गोबर से हो उत्पन्न हुए हैं। गौमाता के मस्तक से उत्पन्न पवित्र गोरोचन सिद्धिदायक है। गुग्गल नाम का सुगंधित पदार्थ गौमूत्र से पैदा होता है। गुग्गल देवप्रिय आहार है, इसलिए हवन करते समय इसकी आहुति दी जाती है। यह आहुति देवताओं को प्रसन्न करती है और मनुष्य का कल्याण भी करती है।

गाय से संबंधित ये सभी मान्यताएँ गूढ़ वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। प्रकृति ने गाय के शरीर को ऐसा बनाया है कि उसके शरीर से उत्पन्न हर पदार्थ अपने आप में विशिष्ट गुण रखता है, जो मनुष्य के लिए हितकर है। मां प्रकृति गाय के शरीर में ये विशिष्टताएँ दो कारणों से उत्पन्न करती है, एक यह कि गाय के शरीर की जो चर्म है, वह सूर्यकिरणों से विशेष शक्ति और ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता रखती है, जिसके कारण गाय से पैदा होनेवाले सभी पदार्थ विशेष गुणकारी होते हैं। दूसरी विशिष्टता यह है कि गाय की शारीरिक आंतरिक बनावट इस प्रकार है कि उसके शरीर से पैदा हुए पदार्थ विशेष होते हैं।

प्राचीन काल में जब हमारे देश के गाँवों में किसी कारण महामारी, प्लेग आदि फैलता था, तब हमारे पूर्वज गाय के गोबर से घरों की दीवारों पर चार अंगुल चौड़ी रेखा पर के चारों तरफ लिपवा देते थे, जिससे रोग के कीटाणु पर में प्रवेश नहीं कर पाते थे। गोमूत्र अनेक रोगों का नाश करता है। इसमें कैंसर जैसे रोगों को भी नियंत्रित करने की क्षमता है। ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि गोमूत्र में गंगा' निवास करती है। इस मान्यता का अर्थ है कि गंगाजल की तरह गोमूत्र भी पवित्र और कीटाणुनाशक है।

गाय के दूध को आयुर्वेद में अमृत कहा गया है। आज वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि गौमाता के चर्म में वह आकर्षण शक्ति है, जो सूर्य की किरणों से एक प्रकार का स्वर्णिम तत्त्व आकृष्ट करके अपने दूध में समाविष्ट कर लेती है। इसी कारण गाय के दूध और घी में कुछ पीलापान झलकता है। सूर्य से प्राप्त यही पीलापन मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक है, जो हमारी आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है।

वैज्ञानिक भाषा में गाय के घी-दूध का यह पीलापन लैक्टोज (Lactose) कहलाता है। इस कारण गाय का दूध माँ के दूध से मिलता-जुलता है, क्योंकि माँ के दूध में सबसे अधिक लैक्टोज होता है। इसके बाद लैक्टोज गाय के दूध में पाया जाता है। गाय के दूध का यह गुण बच्चों का लगभग माँ के दूध जैसा ही पोषण करता है।  एक और तथ्य ध्यान देने योग्य यह है कि गाय के दूध में गाय के अपने चर्म का रंग भी महत्त्वपूर्ण है। वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा अब यह प्रमाणित हो चुका है कि लाल रंग और काले रंग की गायों का दूध सफेद रंग की गाय से गुणधर्म में अलग है। इस कारण उनके दूध की प्रभाव शक्ति भी भिन्न होती है। इस गुण-धर्म की भिन्नता का वैज्ञानिक कारण यह है कि लाल और काली गायें अपने चर्म के रंगों के कारण सूर्य की शक्ति को भिन्न-भिन्न मात्रा में अपने शरीर में ग्रहण करती हैं, जिसके कारण उनका दूध गुणवत्ता में अलग होता है। 
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि गाय के विषय में जो तथ्य बताए गए हैं, वे सब भारत की देशी गाय के विषय में हैं। विदेशी 'जर्सी गाय के दूध में ये सब गुण पूर्णरूप से विद्यमान नहीं होते। इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि 'जर्सी' गाय की 'जेनेटिक म्यूटेशन' (Genetic muation) देशी गाय से भिन्न होती है। प्राचीन काल में देशी गाय की भी कई प्रजातियाँ थीं, पर उन सबका दूध-दही गुणधर्म में एक समान था। अमेरिका ने कानपुर की एक फर्म को 'गौमूत्र' का पेटेंट दिया है और यह स्वीकार किया गया है कि गौमूत्र में कई बीमारियों की रोकथाम और ठीक करने की क्षमता है। रूस के वैज्ञानिकों, विशेषकर डॉ. शीरोविक के अनुसार गाय के गोबर से लीपे गए घरों पर परमाणु रेडिएशन का प्रभाव नहीं पड़ता। यही नहीं, गाय के घी की अग्नि में आहुति देने से जो धुआँ उठता है, वह परमाणु रेडिएशन को काफी हद तक कम करता है।

हम जीतने आधुनिक बनते जा रहे है उतना ही मां प्रकृति के दूर जा रहे है। हमे मां प्रकृति के पास लौटना है। भारतीय संस्कृति की विशेषता है जिसमे प्रकृति को मां का दर्जा प्राप्त है। आज हम मां प्रकृति को कितना प्रदूषित कर रहे है ,वायु के रूप में , रेडिशन के रूप में , नीच स्तर के विचार के रूप में हम सबसे ज्यादा प्रदूषित कर रहे हैं। गौ वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम मां प्रकृति और वातावरण को स्वच्छ बना सकते है। गौ मानव पोषण के साथ साथ वह कृषि को भी विष मुक्त कर अमृत्तस्य भोजन का अधिकारी बनाती है। कृषि क्रांति ने हमें भीतर बीमार बना दिया है , प्रकृति से विकृति की तरफ ढकेल दिया है। विचारो में तामसिकता का अधिक प्रभाव देखा जा रहा है।भोजन केवल जिव्हा के ही स्तर पर सीमित हो गया है। स्वस्थ विचार से स्वस्थ समाज की निर्मित होती है। गौ द्वारा हम सात्विकता को बढ़ाकर स्वस्थ समाज की नीव रख सकते है। गौ हमारी माता है ,गौ से प्रेम करना ,उसे सुरक्षित रखना हम सबका अधिकार है।


Comments

Popular posts from this blog

श्वास के साथ जीना सिखना होगा !!

मनुष्य के शरीर का विज्ञान अदभूत हैं। मनुष्य के शरीर का हर एक अवयव अपने योग्य स्थान पर अपना कार्य सुचारू रूप से करता है। मानव शरीर यह वह मशीन है, जो आपका हर समय में आपका साथ निभाती है। हमारे शरीर के प्रत्येक क्रिया का वैज्ञानिक आधार होती है।अगर शरीर पर कुछ घाव हो जाए तो शरीर अपने आप उस घाव को ठीक करता है। शरीर में अशुद्धि जमा होने पर उस टॉक्सिन को शरीर के बाहर निकले की क्रिया भी अपने आप शरीर करता है। इंटेलेंजेंस का खज़ाना है, मानव शरीर। हमे ध्यान देकर प्रत्येक क्रिया को समझना है। पूर्ण स्वस्थता को प्राप्त होना हमारा मूल कर्तव्य है। स्वास्थ को आकर्षित किया जाए तो हमे स्वास्थ निरोगी होने से कोई नही रोक सकता। मनुष्य शरीर इस अखिल ब्रह्माण्ड का छोटा स्वरूप है। इस शरीर रूपी काया को व्यापक प्रकृति की अनुकृति कहा गया है। विराट् का वैभव इस पिण्ड के अन्तर्गत बीज रूप में प्रसुप्त स्थिति में विद्यमान है। कषाय-कल्मषों का आवरण चढ़ जाने से उसे नर पशु की तरह जीवनयापन करना पड़ता है। यदि संयम और निग्रह के आधार पर इसे पवित्र और प्रखर बनाया जा सके, तो इसी को ऋद्धि-सिद्धियों से ओत-प्रोत किया जा...

आव्हान हो रहा हैं!

मैं आव्हान करता हूं, उन युवाओं का जिनके रक्त में देश भक्ति का ज्वालामुखी फूट रहा है। जिनके प्राण मातृभूमि की सेवा लिए तत्पर है। मैं आव्हान करता हूं उन सुपतो का जिनका कण कण समर्पित हैं। मैं आव्हान करता हूं जिनके भीतर ऊर्जा सा प्राण दौड़ रहा है! हो रहा है आव्हान युगपुरुष का, भारत की धरा पर प्राकट्य हो उस युग पुरुष का! धन्य है वह भारत की माटी जहां का कण कण राम है, यह का हर एक युवा प्रचंड पुरुषार्थी है। युवाओं के संप्रेरक, भारतीय संस्कृति के अग्रदूत, विश्वधर्म के उद्घोषक, व्यावहारिक वेदांत के प्रणेता, वैज्ञानिक अध्यात्म के भविष्यद्रष्टा युगनायक भारत के अनेक युगपुरुष, गुरु जिनको शरीर त्यागे सौ वर्ष से अधिक समय हो गया है, लेकिन उनका हिमालय-सा उत्तुंग व्यक्तित्व आज भी युगाकाश पर जाज्वल्यमान सूर्य की भाँति प्रकाशमान है। उनका जीवन दर्शन आज भी उतना ही उत्प्रेरक एवं प्रभावी है, जितना सौ वर्ष पूर्व था, बल्कि उससे भी अधिक प्रासंगिक बन गया है। तब राजनीतिक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी माँ भारती की दोन-दुर्बल संतानों को इस योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद की हुंकार ने अपनी कालजयी संस्कृत...

human magnative power Aura

This body electricity, in whose body the more quantity is accumulated, the more radiant, beautiful, active, energetic, energetic, talented it appears. The immunity power of the body and the micro-sightedness, farsightedness, and intelligence of the brain depends on this electricity. The sweetness of nature is commonly called attraction. Even in the softness of the limbs, the beauty of which is reflected, in them also, from the classical point of view, the special power of electrical vibrations is contained in them. There is a special charm in someone's eyes, in someone's lips, in someone's chin etc. On its elemental analysis,  the electricity of the human body is proved to be wavy. Whenever it starts happening in it, the body becomes dry, ugly, sluggish, dull, and visible. There is humility in the eyes, and sadness on the face, seeing this dissolution, it can be concluded that the waves of radiance have become relaxed and there is a lack of desired energy. Measures a...