निर्भय होना ही है।
भय आपको सिमित कर रखता है।
वास्तव में भय एक मानवीय कमजोरी है। सौंदर्य को बुढ़ापे का भय है, धनी को निर्धनता का भय है, बलशाली को निर्बलता का भय है। इस प्रकार किसी-न-किसी रूप में सर्वत्र भय व्याप्त है। भय के कारण ही आज इन्सान वैभव के शिखर पर बैठकर भी अशांत है, व्याकुल है। सारे साधन मनुष्य के पास हैं, लेकिन फिर भी इन्सान खोता जा रहा है।
क्रोध में भरा, तनाव से तना हुआ, चिड़चिड़ा स्वभाव बनाए असंतुष्ट नजर आता है। इस कदर भयभीत कि परिवार, समाज देश तो क्या अपने स्वयं के गौरव की रक्षा तक नहीं कर पा रहा है। मालिक नौकर से भयभीत, नौकर मालिक से। नियोक्ता अपने कर्मी से और कर्मचारी अपने नियोक्ता से भयभीत है। इस प्रकार हर मनुष्य भय के चलते मारा-मारा फिर रहा है। इन्सान भूल चुका है कि वह अमृत पुत्र है, सबका पिता परमात्मा उसका भी पिता है, जो संसार का सबसे बड़ा राजा है, उसका यह पुत्र है और राजा के पुत्र में भी राजा बनने की संभावनायें होती हैं।
भय और इंसान ??
यही नहीं इन्सान भयभीत इसलिए भी है कि वह अपने कर्म की ताकत, परमात्मा की शक्ती पर विश्वास नहीं करता, अपने गुरु के प्रति आस्थावान नहीं हो पाता, अपने गुरु के चेहरे के सामने अपना चेहरा तो दिखाना चाहता है, पर अंदर से पूर्ण आस्थावान नहीं हो पाता।
इस भय का एक आधार निराशा भी है। किसी व्यक्ति को निराश कर दीजिये, वह कुछ करने योग्य नहीं रह जाएगा। किसी स्वस्थ व्यक्ति के दिमाग में यह भर दीजिये कि वह बीमार है फिर अच्छे से अच्छा डॉक्टर भी उसका इलाज नहीं कर पाएगा। वास्तव में व्यक्ति भय से अधिक भय के दानव से डरता है। भय के इस दानव को आप खुद जगाते हैं। निराशा, चिंता आपके अंदर से ही पैदा होती हैं। अतः अभय के लिए स्वयं से कहिए कि मैं साधारण नहीं, असाधारण हूं। भगवान ने हमें अपने अंश के रूप में बनाया है और हम स्वयं अपने स्वामी हैं। भय से मुक्ति चाहते हैं, तो अपने को आत्मा, नित्य-अविनाशी मानना होगा।
अभय शक्ति का आव्हान करो!!
दूसरी बात कि भय की आंखों में झाकने की शक्ति जगानी होगी अंदर से तभी भय भागेगा। हम जितना डरते है, उतनी ही भय की शक्ति बढ़ती है। हिम्मत और साहस से आगे बढ़ते हैं, तो भय पीछे हटता है और अंदर शौर्य जागता है। इस तरह भय से लड़ ही नहीं सकते, बल्कि ऐसा करके निर्भय होकर विचरण करने की क्षमता आ जाएगी।
अज्ञान से भी भय उपजता है और ज्ञान निर्भयता लाता है। ईश्वर की भक्ति और सदगुरु का आशीर्वाद आपको तत्क्षण निर्भयता प्रदान करते हैं। पीड़ाओं के समय संयम, गुरु की शक्ति-कृपा व ईश्वर की प्रेरणायें अभय बनाती हैं।
पर जो इससे काम नहीं लेता, अपनी विवेक शक्ति का इस्तेमाल नहीं करता। दुनिया की तरफ देखता है और केवल कल्पना ही करता रहता है। वह भयभीत ही रहता है। जबकि हर इंसान के अंदर दैवीय शक्ति विद्यमान हैं, जरूरत है उसे जगाने की, जरूरत है अपने स्वरूप को
पहचानने की और जरूरत है कल्याण के मार्ग पर स्वयं कदम बढ़ाने की। याद रहे दुनिया का कोई हाथ किसी को आगे नहीं बढ़ाता, आगे बढ़ाती है इंसान का विवेक अपनी मेहनत, ज्ञान के रूप में परमात्मा की प्रेरणा, गुरु पर श्रद्धा-विश्वास उसकी कृपा और मंत्र शक्ति भय से मुक्ति दिलाती है।
‘दुर्गा दुर्गति शमनी,दुर्गा पद्म निवारिणी।
बशर्ते स्वयं को स्वयं का स्वामी मानकर चलना पड़ेगा। यह मानकर जीना पड़ेगा कि हम किसी से पराजित नहीं हो सकते। न अपनी समस्याओं से, न बीमारियों से, न कष्ट-क्लेशों से, न भय दिखाने वाले तत्वों से, न निराशाओं से।
यदि हमने खुद को दीन-हीन मानने से इंकार कर लिया, तो हमारे मार्ग खुल जायेंगे। परमात्मा की ऊर्जा हमारे अंदर से बहने लगेगी। आत्मबल जग उठेगा। तब हम दीनता, हीनता एवं भय में नहीं जी सकेंगे। अतः आइये! हम सब अपनी गुरु चेतना में डूबकर भयमुक्त होकर जीने का संकल्प लें।
भय को ही विजय यात्रा का हिस्सा बनाए।
भय आपकी कमजोरी के रूप में उभर कर सामने आया है। भय को ही आप अपना मित्र बनाओ । क्यूकि भय आपकी क्षमता का प्रदर्शन करने में सहायता करता है, भय से आप अपने क्षमता का अनुमान लगा सकते हो।भय आपका पथ प्रदर्शक के रूप में सामने आएगा तो ही आप अपनी क्षमता का विस्तार कर पाओगे। आपके जीवन में भय है तो आप उसी भय को दूर भी कर सकते हो। विश्वास करो, भययुक्त होना ही आपके हाथों में है ,निर्भय होना ही आपके हाथों में ही हैं। जरूरत है आपको अपने साहस को जगाने की और भय के ऊपर विजय पाने की।अपनी क्षमता को पूर्ण विकसित कर निर्भय होकर जीवन जीने की। निर्भय होकर जीवन जीना आपका अधिकार हैं।
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