स्वस्थ नेत्र : आज मानसिक तनाव व दबाव,अनियमित जीवन, अप्राकृतिक खानपान के कारण छोटे बच्चे भी नेत्र-रोगों के शिकार हैं। आँखें हमे प्रभु की दी हुई अनमोल देन हैं। इनकी रक्षा करें। नेत्र रोगों के उपरोक्त कारणों को दूर करें। हरी सब्जियाँ, फलों आदि का अधिक प्रयोग करें। सूर्य-स्नान, नेत्र-स्नान, जल-नेति, पॉमिंग, आँखों तथा गर्दन के व्यायाम आदि सीखें व नियमित अभ्यास करें। तनाव से बचें। बहुत कम या बहुत अधिक प्रकाश में पढ़ाई न करें। ज्योति बिंदु या काले बिंदु पर त्राटक का अभ्यास करें। अपनी अनमोल आँखों का ख्याल रखेंगे तो ये आपकी जीवन भर सेवा करेंगी एवं साथ निभायेंगी।
इस संसार में प्राणीमात्र के लिए आँखें भगवान की एक अनुपम देन हैं। आँखें स्वस्थ रहें एवं आजीवन साथ निभायें, यह प्रत्येक जीवधारी की अभिलाषा रहती है। बिना आँखों के संसार मात्र अंधकार है। कहा भी है - आँख है तो जहान है। स्वस्थ आँखों के बिना जीवन अधूरा है। ऐसी उपयोगी आँखो के स्वास्थ्य के लिए हम बहुत कम ध्यान देते हैं। यदि कुछ सरल सी बातों को अपने दैनिक जीवन में उतार लिया जाय तो ईश्वर की ये अनुमोल देन जीवनभर हमारा साथ निभायेंगी।
पढ़ते समय प्रकाश सामने व थोड़ा बांयी ओर से आये ऐसी व्यवस्था करें। पुस्तक को लगभग एक फिट दूर रखकर पढ़ें अथवा लिखें। बहूत तेज प्रकाश और बहुत कम प्रकाश में पढ़ाई न करें। बहुत झुककर या लेटकर पढ़ाई न करें। बिजली या धूप की तेज रोशनी में पढ़ना ठीक नहीं। चूल्हे पर, धुँए में या चकाचौंध रोशनी में कभी कार्य न करें। इससे Vitamin "A" की कमी हो जाती है। कार में बैठकर यात्रा करते हुए पढ़ने से और भोजन के तत्काल बाद पढ़ने से नेत्रों को हानि पहुँचती है। बिना दबाव व तनाव के स्वाभाविक रूप से देखने की आदत डालें। घूर घूर कर नहीं देखें। बीच-बीच में पलकें झपकातें रहें। T. V. कार्यक्रम, फिल्म, कम्प्यूटर कार्य में स्क्रीन की ओर लगातार न देखें। इनके एकदम सामने न बैठ थोड़ा दूर व तिरछा बैठें। बीच-बीच में Palming व गर्दन का व्यायाम करें, व आँखों पर ठंडे पानी के छींटे डालकर धोयें। अनुचित आहार व दोषपूर्णरक्त संचार भी नेत्र रोगों के प्रमुख कारण है। आँखों के रोगों से बचने व मुक्त होने के लिए आहार विहार के संयम द्वारा शरीर शुद्धि व कब्ज से मुक्ति एक प्रमुख आधार है। आहार में फल व हरी सब्जियों व सलाद की मात्रा अधिक रखें। अंकुरित मूंग व चने भी उत्तम हैं। गाजर, चुकन्दर व आंवलों का रस नेत्र ज्योति हेतु उत्तम है।
फल, हरी सब्जियां,सलाद आदि का अप्राकृतिक आहार जैसे डिब्बाबंद (Packed), परिरक्षित (Preserved), परिष्कृत (Refined) व तले हुए (Deep Fried) खाद्यों से दूर रहें।लगातार मानसिक दबाव व तनाव बने रहने से गर्दन के पीछे की रीढ़ की हड्डी कड़ी हो जाती है व आसपास की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं, जो कि नेत्र दोषों का प्रमुख कारण हैं। चिंता, नकारात्मक विचार, भय, घृण, मानसिक तनाव, किसी दबाव आदि से मुक्त रहने का प्रयास करें।पॉमिंग (Palming) : नेत्रों को सहज ही ठंडक व विश्राम देने की यह एक सर्वश्रेष्ठ विधि है। इसमें आँखों को बिना स्पर्श किये हथेलियों से ढका जाता है तथा उसमें आँख खोलकर अंधकार का दर्शन किया जाता
मस्तिष्क व आँखों को शिथिलीकरणतथा पॉमिंग द्वारा कार्यों के बीच में विश्राम देते रहना उत्तम है। नेत्र-स्नान कागासन की स्थिति में बैठकर अथवा वॉश बेसिन पर सहब झुककर मुँह में पानी भर ले। तत्पश्चात् आँखों पर ठंडे पानी के १०-१५ चार छींटे मारे। फिर मुँह से पानी छोड़ दें। पुनः मुँह में पानी भरकर क्रिया दोहरायें। ऐसी ३ क्रियायें करें। इस क्रिया से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मस्तिष्क की गर्मी दूर होने से सिरदर्द, आँखों की थकान व जलन दूर होती है। रात्रि विश्राम के पहले इस क्रिया को करने से नींद अच्छी आती है। सावधानियाँ - जिन्हें मोतियाबिन्द हो, हाल ही में आँखों का ऑपरेशन हुआ हो या आँखें सदैव लाल रहती हों, वे कृपया यह नेत्र-स्नान क्रिया न करें। 1 लिटर पानी में 50gm त्रिफला, मिट्टी के बर्तन में रात को भिगोयें व प्रातःमसल कर छानकर नेत्र स्नान करें। अथवा हरी बोतल में रखें पानी से आँखें धोयें।
सुर्य स्नान सूर्योदय व सूर्यास्त की किरण का (Visible rays का) 5 मिनट तक बंद नेत्रों से धूप-स्नान लेना भी दृष्टिदोषों को दूर करने में सर्वोत्तम है। इसके बाद पॉमिंग व ठंडे पानी के छीटों द्वारा नेत्र स्नान करें। जल-नेति: नेत्रों की ज्योति व स्वास्थ्य के लिये यह सर्वोत्तम है। इसे सीखें व करें। सप्ताह में एक बार करना पर्याप्त है।आँखों के तथा गर्दन के विभिन्न व्यायाम सीखें व नियमित करें। आसन : नेत्र रोगों को दूर करने में सर्वांगासन, योगमुद्रासन, हस्तपाद चक्रासन, शीर्षासन, भूमिपाद शिरासन आदि बहुत उपयोगी आसन हैं।नियमित धूप स्नान, वायु स्नान, उषा: पान, व्यायाम, उपवास आदि से नेत्र जीवन भर आपका साथ निभायेंगे। प्राणायाम : नाडी शोधन व भस्त्रिका प्राणायाम उपयोगी हैं। इन्हें सीखें व करें। त्राटक : किसी ज्योति बिंदु या काले बिंदु पर नेत्रों को स्थिर करें। पांच मिनट से प्रारम्भ कर 30 मिनट तक अभ्यास बढायें। इससे नेत्र ज्योति कई गुना बढ़ जाती है। सकारात्मक विचारों द्वारा मन-मस्तिष्क को स्वस्थ व तनाव मुक्त रखें।
प्रातः हरी घास पर नंगे पैर आधा घंटा टहलें तथा हरियाली दर्शन करें। रोज प्रातः व रात्रि में पावों के तलवों की तिल या सरसों के तेल से मालिश करें। मैले हाथों या गंदे कपड़े से आँखों को कभी पोछें या मलें नहीं। दाँतों के स्वास्थ्य व सफाई पर भी ध्यान दें। दाँत मजबूत होंगे तो नेत्र ज्योति भी तेज होगी। यथासम्भव ठण्डे जल से स्नान करें। नेत्रों हेतु लाभकारी है। सौंफ का बारीक चूर्णकर उसमें बराबर भाग मिश्री या चीनी पाउडर मिलाकर रख लें। रात्रि सोने से पहले एक चम्मच लें। यह नेत्र ज्योति के लिए उत्तम है।
सकारात्मक चिंतन का अभ्यास करते वह अखिल ब्रह्माण्ड के प्राकृतिक व शाश्वत सिद्धांतों, कर्मफल के अटल विधान तथा ईश्वरीय न्याय पर पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा रखता है। वह सदा अपने विचारों को पवित्र, वाणी को शहद जैसी मीठी व रत्नों से अनमोल तथा कर्मों को श्रेष्ठ, दिव्य गुणों से महकता रखता है। धन्य हैं वे जो जीवन में सकारात्मक चिंतन का अभ्यास करते हैं। धन्य है वे माँ-बाप जो अपने बच्चों को सकारात्मक चिंतन के संस्कार विरासत में देकर जाते हैं। आइए! जीवन में सकारात्मक चिंतन के विकास हेतु हम आज से व अभी से ही प्रयास प्रारम्भ करें एवं इनके द्वारा जीवन में सच्ची सुख-शांति, आनंद, प्रेम की प्राप्ति हेतु श्रेष्ठ कर्मों के बीजों को बोयें।
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